अदृश्य मैं



मृगाङ्क की कलित शबीह
पद्मबन्धु की राज्ञी या अभिसर
अन्तर्भावना शून्यता में प्रभाव
ख्वाबों के भवसागर,  अदृश्य मैं

 प्रादुर्भाव कर रहा चेतन हयात
रहनुमा बनकर रह गया अकेला
इस्तिकबाल कर रही यामिनी तारक 
जहां नव आगन्तुक का है अभिसार

विकल   घात  दृगम्ब  के   तीर
उदधि  अवलम्ब  झष   के  पीर
आर्त्तव   नीरद   दीप्ति   नूपुर
शून्य  क्षितिज  दिव   अन्तः पुर 

सन्सृति अचेत अवरति आसिद्ध मञ्जर
अंतर्ज्योति  चैतन्य  इतस्ततः  आदि
क्षुण्ण - अक्षुण्ण प्रणव में अन्तर्धान
उर्ध्व  स्थिर  अधोगति   पराकाष्ठा

आणविक द्वयणुक अवकलित मिलन
पुष्पपथ से प्रवर्द्धन जीवन वृति
आतम  से  मिला  नवल  चेतन
नूतन प्राज्ञत्व कलित पुष्प श्रृङ्गार

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