अञ्शु नूर



मारुत  चली वक्त के तालीम
गिरि धरा वारिश अवलेप समर
घनघोर व्यवधान रही इस मसविदा
प्रत्यागमन करूँ या अग्रेषित रहूँ ?

इच्छा शक्ति  पखान भग्न क्यों ?
आरजू पारावार विस्मृत कहां ?
मञ्जुल अनागत का अन्धियारा
प्रतिभास बलिण्डा अत्युग्र क्यों ?

रोहिताश्व धधक रही उद्विग्नता में
अविक्रान्त है मम  प्रज्ञा  तस्कीन
अवसान रहा प्राणान्त के  कगारे
इम्तहान महासमर में मशक्कत मेरी

हौसला  विहग में तरणि मराल
व्याघात ही अभ्यनुज्ञा चाक्षुष
चन्द्रहास  बनूँ  अलमास  वज्र
उच्छेदन कर दूँ  मातम प्रतिकार

प्राग्भार  फणीश  उत्ताल अभ्र
प्रवाहमान धार निस्सीम ब्रह्माण्ड
आत्मोद्भवा प्रज्ज्वलित अञ्शु नूर
भव सिन्धु   अधोभुवन   निराकार


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