पारावार


घेर - घेर रहा उस नभ को
शिथिल  नहीं , उग्र   है
भानु मृगाङ्क मद्धिम क्यों ?
क्या प्रतिघात है नीरद का ?
कोई अपचार  तो  नहीं !
या दिवाभीत प्रकाण्ड क्या ?

गिरी का  तुगन्ता न  देख
देख पारावार की विरक्ति
व्यामोह अनुराग परवरिश है
मनोवृति समरसता वालिदा जग

निर्झरिणी वामाङ्गिनी जिसका
अभिवाद नित करती उस भूधर
त्रिशोक  है  कलित  अलङ्कृत
प्रसून कानन मञ्जूल दिव्य 
निदाघ अनातय का आलम नहीं
 मेह ज्योतित आधृत जलावर्त

शून्यता  प्रलय निराकार नहीं
क्षुब्द भरे मही प्राज्ञता निरामय
हलधर  का ही सम्भार  रीति
तनी महरूम पीर समझे कौन ?



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