सन्ताप भरी गौमाता
महतारी मेरी अभिरति गौमाता
उपनिषद् - वेदों के अनुयाता है
आर्यावर्त की मञ्जूल भवितव्यता
जहां सन्दानिनी अगाध्य अधिष्ठाता
परवरिश करती रुधिर गात्र से
अनुज्ञा सऋष्टि सन्सार विधाता
पञ्चगव्य सोम जीवनम् उदधि
वनिता गीर्वाण रिहायश जहां
आढयता अन्तश्छद् छत्रछाया का
प्राणवायु अनन्तर प्रदायी अर्णोद
मनीषी सावर्णि अगौढ़ इंद्रियार्थ
वेदविहित ऊर्मी ईशित्व उद्ग्राहित
धेनु ललकार की कोलाहल
रियाया की उपेक्षा का बहार है
भक्षक की विडम्बना का आप्यान
क्लेश भरी अन्तर्धान दहशत है
अश्रुयस समागम की अधोगति
मानवीयता का परिचार्य कोताही
इशरत तिजारत का रङ्गरसिया है
हुङ्कार कर रही मन्दसानु सन्ताप
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