इंतकाम कविता


मत देख उस भुजंग को ,
गरल  का घड़ा  भरा  है ।
ह्रदय  की वेदना  समझों ,
मारुत   की  बवंडर   है ।

मत पूछ उस लालिमा को ,
उनकी  ज्योतिमान धरा है ।
कर  मशक्कत  हो  प्रभा ,
वों बुलन्दी का आलम्भन है ।

मत सुन उस भ्रममूलक को ,
मिथ्या  का  पुष्ट आबंडर  है ।
छल - प्रपंच   परवशता  ही ,
निशाचर   का  कुजात   है ।

मत कर उस  अशिष्टता  को ,
             अधर्मपना अभिशप्त साँकल है ।
अपकृष्ट अनावृष्टि बाँगुर गात ही ,
घातक अंजाम का  द्योतक  है ।

मत  हंस  उस  मुफलिस  को ,
दमन  का  व्यथा  असह्य   है ।
वक्त  का  आसरा  है   उसे ,
इंतकाम का ज्वाला उग्र  है ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रामधारी सिंह दिनकर कविताएं संग्रह

मेसोपोटामिया सभ्यता का इतिहास (लेखन कला और शहरी जीवन 11th class)

आंकड़ों का सारणीकरण तथा सारणी के अंग Part 2 (आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण) 11th class Economics