लॉकडाउन कविता
काश कभी न होता कोरोना का आगमन,
तो कभी न लगता यहां लॉकडाउन।
ऐसा लगता है मानो....
जीवन शैली बिल्कुल बदल - सी गयी।
जीवन बिल्कुल कठिन बन गयी।
सपनों में न कभी सोचा था,
ये लॉकडाउन भी कभी होगा।
पर कोरोना की वैश्विक महामारी,
आज लोगों पर पड़ रही है भारी।
कितनों ही आर्थिक नुकसान हुआ,
कोरोनावायरस महामारी से।
गरीब लोग भूख के कारण,
दिन प्रतिदिन अंतर्धान हो रहे।
कभी पक्षी घोंसलो में थे,
आज वों भी आजाद है।
आज हमारी आजादी छीन गयी,
हम कमरे में कैद हैं।
पुलिस और सफाई कर्मी का,
लॉकडाउन नामक चीज़ नहीं।
जान न्यौछावर कर देते,
वतन की सेवा के लिए।
हम इंसान की उनकी बात डालते हैं,
तिरस्कृत कर, बाहर निकलते हैं।
एक जमाना था.....
जब कभी महफ़िल साहिल था।
आज उसकी खौफ है,
क्योंकि आज कोरोना का आतंक है।
**पुष्पा कुमारी
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