हुंकार ( कविता )


कुसुम हूँ या दावानल  हूँ
महाकाव्यों का सार  हूँ  मैं
जगत का प्रस्फुटित कली  हूँ
जनमानस का कल्याण  हूँ  मैं

वात्सल्य  छत्रछाया  व्योम  का
विप्लव   पतझड़  हूँ  मैं
नूतन  सारंभ उन पयोधर का
मधुमास   द्विज  हूँ  मैं

क्षणभंगुर नश्वर मंजूल काया
नवागंतुक मुकुल चेतना हूँ  मैं
अचिन्त्य  रंगीले   स्वप्न
रत्नगर्भा का संसार  हूँ  मैं

श्रीहीन का करुण वेदना
क्षुधा का खिदमत  हूँ  मैं
अवसाद का है हाहाकार
निराश्रय का शमशीर हूँ  मैं

अनुराग   प्रकृति   पुजारिन
सरिता पुनीत धारा  हूँ  मैं 
सलिल - समीर - क्षिति  चर
सुरभि सविता सिंधु  हूँ  मैं

अभंजित अचल अविनाशी
 गिरिराज हिमालय हूँ  मैं 
सिंधु - गंगा - ब्रह्मपुत्र  उद्गम
महार्णव का समागम हूँ  मैं

व्यथा हूँ , उलझन हूँ , इंतकाल हूँ
दिव्यधाम भू-धरा हूँ  मैं
किंचित माहुर उस भुजंग की 
अमृतेश्वर का रसपान हूँ  मैं

रश्मि चिराग रम्य उर की
मदन आदित्य नग हूँ  मैं
मत पूछ मेरे रुदन हृदय की
अतुल  चक्षुजल हूँ  मैं

मत खोज तिमिर आगंतुक को
उसी का अविसार हूँ  मैं
जन्म - आजन्म के भंवर से
अंतरात्मा का आधार हूँ  मैं

जगदीश का फितरत महिमा
कुदरत का कलित हूँ  मैं
मधुऋतु अपार  सौंदर्य
ऋजुरोहित सप्तरंग हूँ  मैं

स्वतंत्र हूँ ,  जद हूँ , श्रृंगार हूँ
नभ का उड़ता परिंदा हूँ  मैं
प्रलय - महाप्रलय समर का
शंखनाद का हूंकार  हूँ  मैं


**वरुण सिंह गौतम


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