गरीब की जिंदगी




हम गरीबों की बस्ती में,
हमारी एक अलग हस्ती है।
चेहरे की उनकी मासूमियत,
हम मानव नहीं समझते उनकी कीमत।

शायद इसलिए ना,
 क्योंकि वों विवश है।
गरीब होना पाप तो नहीं,
या कोई अभिशाप तो नहीं।

उनकी जख्म काफी गहरी थी,
फिर भी किसी को दिखा नहीं।
क्योंकि वों हंसते रह गए,
रोते हुए किसी ने उन्हें देखा नहीं।

उनकी जिंदगी में चैन कहां थी ?
कोई चैन की नींद का सोया था,
कोई बेचैन - सा होकर रात बिताया।
उन्हें देखकर मानो ऐसा लगता है,
वों हमसे कुछ कह रहा हो।


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