बचपन के दिन कविता
बचपन का वों जमाना
खुशियों का बड़ा खजाना था।
बचपन की बिदाई तो थी एक दस्तूर,
क्यों वों हो गया आज हमसे दूर।
क्यों हम इतने बड़े हुए,
क्यों बीत गया वों नन्हा-सा बचपन।
वों प्यारा-सा बचपन,
आज भी उसकी यादें आ जाती है।
जब छोटे थे तो तमन्ना चांद को पाने की
लेकिन खिलौनो से ही खुश हो जाते थे।
कितना मनोरम-सा था वों बचपन
आज हो गई बचपन में अर्चन
क्योंकि वों बचपन बीत गई।
कितना नन्ना-सा वों बचपन था,
मां की डांटो में भी प्यार झलकता था।
प्यारी-सी मुस्कान आती थी चेहरे पर,
आज क्यों गुम हो गया बड़े होने पर।
वों बचपन का जमाना था,
जब खुशियों का फ़साना था।
नन्हा-सा दिल था नन्ही-सी अरमान,
आज वो कहां गायब-सा हो गया।
ऐ खुदा कुछ ऐसा कर,
जिसमें बन जाए हमारी एक अलग पहचान।
काश वो बचपन के दिन,
फिर से वापस आ जाता।
वों भाइयों से झगड़ना,
वों मां का मुझे मनाना,
बहला-फुसलाकर कहानियां सुनाना,
और अपनी हाथों से खाना खिलाना।
यें सब पीछे क्यों छोड़ गई।
आज भी वों बचपन याद आती है,
आंखों में आंसू आ जाते हैं।
काश फिर से छोटे हो जाते,
प्यारा-सा वों बचपन का दिन,
फिर से वापस आ जाता।
**पुष्पा कुमारी
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