एकांत कविता


एकांत जीवन का आधार है
आनंदमय व चरमोत्कर्षक
अनुरक्त हो अंतःकरण में
आत्मविस्मृत   बेसुध-सा

अंतर्मुखी वृत्तियां अनुरूपण
जग - संसार स्वच्छंद हो
चांदनी रात के सितारे मनोरम
शून्यता - अशब्दता अपार हो

मंद - मंद बहती पवनें
छंद - छंद हिलते पल्लव
सागर की कलकल करती नीर
अनुपम रहा पर्वत हिमालय


तत्वों  के  केंद्र  बिंदुओं ‌ से
रवि  का  है  ऊर्जा  निदाग  
शून्य - शांत जीवन सरोवर में
अंतर्धान हो जा आत्म गात में

प्रकृति  की  कृती कृति  है
ईश्वरप्रदत  का रत रति  है
जन्म - मरण के यथार्थ से
सर्वदा सदाव्रत रहता एकांत


**वरुण सिंह गौतम


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