मैं क्या कहूं ?
मैं क्या कहूं इस धरा को
प्रकृति का मनोरम दृश्य जहां
हरेक जीवन का बचपन है
नटखट नासमझ अल्हड़ - सा
प्रकृति की सुंदरता अत्योत्तम
पर्वत नीड़ सागर हरियाली जहां
पर्वत की विलासिता को देखो
वृहत दीर्घ तुंग गगनचुंबी धरा
उस स्वच्छन्द परिंदा को देखो
नौकायन सौंदर्य सरिस कान्ति
मनुज से इस्तदुआ है मेरी
प्रभाहु है, प्रबाहु रहने दो मुझे
पारावार वसुधा की प्रदक्षिणा
पुनीत - मंजुल - दर्प - वालिदैन
ज़िन्दगानी अनश्वर कलेवर
मतहमल प्रवाहशील अनाशी
जीवन वृतांत हरीतिमा तश़रीफ
आलिंगन करती सारंग पावस
नभचर का आशियाना जहां
आतम अचला आलम्बन
प्रभाकर प्रीतम उज्ज्वल प्रभा
पराकाष्ठा प्रतीतमान प्रभुता
प्रदायी कर्ण कृर्तिमान वजूद
चक्षुमान अखिलेश्वर वसुन्धरा
सुधांशु सौम्य व्योम निलय
कालचक्र उद्दीप्तमान प्रकृति
सौरजगत आबोहवा पद्निनीकांत
शशिपोशक अपरपक्ष कान्तिमय
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