जिंदगी
जिंदगी एक खेल है,
जहां सुख और दुख
दोनों का मेल है....
खुशियां है कैद जहां,
फिलहाल वह गमों का जेल है।
उसने रचा यह कैसा खेल है...?
जिंदगी एक रेस है,जो
मुश्किलों में भी डाटा रहा,
यहां उसी की जीत है ....
जिंदगी की किताब में
हमारे हर लम्हे महफूज हैं,
लफ्ज़ सारे धुंध में लिपटे पड़े...
मगर फिर भी हम
पढ़ने को मजबूर हैं....
जिंदगी तुझसे शिकायत नहीं है
मगर हुआ जो भी ये ,
क्या लगता वह सही है ..?
यार ! हम तो मुस्कुराने से भी
डरने लगे हैं ..
यू तिनका तिनका कर
बिखरने लगे हैं....
जिंदगी एक गणित है,
जहां सारे गुनाह का
हिसाब लिखित है....
अब वो ख्वाब आसमान से
लौट रहा.....
जमीं पर ही पनाह
खोज रहा.....
बहुत वक्त हुआ
इन अंधेरों से मिला
अब तो बेचैन दिल भी
सवेरा खोज रहा।
खत्म कर जिंदगी
अब तेरा ये जंग. ...
जीना चाह रहा मैं
बस यादों के संग
हू तन्हा मैं, लौटा दे
मुझे मेरे खुशियों के रंग....
पलक श्रेया
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगुसराय
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