विश्वपटल का खतरा

विश्वपटल का हो रहा खतरा
मनुष्य सभ्यता के दोहन से
तनुधारी मरणोन्मुख रोदन
सर्वव्यापी विषदूषण है
त्राहिमाम - त्राहिमाम करता जग
हो रहा नापाक त्रिविधवायु है

दावाग्नि, अनुर्वरा, अनावृष्टि धरा
कंगाल हो रहा है विश्वधरा
वीरवह की है अभिवृद्धि
है खौल रहा पटल काया

मासूमियत का है चित्कार 
क्यों हो रहा है हीनाचार ?
बेरोजगारी का मजमा है
क्यों कर रहे आत्मदाह ?

सत्य - आस्था का दुनिया नहीं
अभिताप का तशरीफ़ रहता 
असामयिक तबदीलन से
हो रहा प्रकृति का पतन

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