चल मुसाफिर कविता

मुश्किल भरी जिंदगी में,
संघर्षरत का दुनिया है।
अभिजय का है सरताज,
जो महासमर का अर्जुन है।
चल मुसाफिर, अभ्यस्त हो जा,
चंद्रहास का अब वक्त आया है।
कोयला से हीरा बनने की तमन्ना,
दीवानगी के प्रतिच्छाया है।
तू तोड़ दे उस जंजीरों को,
 आफत की धारा का भंजन कर।
रख हौसला, वक्त का आसार है,
प्रारब्ध को बदलने गर्जन का आसरा है।
जीत की आरजू हर मानस का हो,
विश्वपटल का यही है पुकार।
कर अटूट फैसला, उन्माद रख,
यथार्थ में जीत का हवस का आस है।
पराभव का अफसाना दूभर नहीं,
जहां विजय का भी राह है।
आन - बान - शान का दास्तां,
बुलन्दी साहचर्य का परवाना है।


**वरुण सिंह गौतम


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