दास्तां

इतिवृत्त का क्या सुनूं  मैं
गुलामी की जंजीर जहां ।
कोई औपनिवेशिक होते देखा
 किसी को उपनिवेश धरा ।

साध्वी वनिता का यंत्रणा
ज्वाला में धधकते देखा ।
अस्पृश्यता व सहगमन का
कराहेना  का  नाद  देखा ।

तांडव छाया हाशिया का 
अपनों का अलगाव देखा ।
क्या कहूं उन दास्तां को
  दासता क्लेश उत्पीड़न देखा ।

 त्रास - सी दुर्भिक्ष काल का
 सियासत आर्थिक संकट देखा ।
 संप्रदायों का बहस - मुबाहिसा‌ को
  मानवीयता घातक हनन देखा ।

रक्तरंजित कुर्बानियों की दास्तां 
वतन पे प्राण निछावर होते देखा ।
विरासत - संस्कृति - धरोहर प्रताप
 फिरंगीयों का परिमोश होते देखा ।

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