ओ मेरी मां कविता


मां तेरी महिमा अपरंपार
संसार की जननी है तू
सब दुख-दर्द हर लेती है तू
तू ही पालनकर्ता सर्वेश्वर
तेरी छाया तरुवर की छाया है
तेरी चरणों में ब्रह्मांड की काया है
जहां मिलती है निस्वार्थ की भावना
प्रथम गुरु आप ही कहलायों
तेरी करुणा पृथ्वी से भारी है
अपनी मां को क्यों भूल जाते लोग
उनके करुणा को क्यों टेस पहुंचाते लोग
एक मां सौ बेटों को पाल लेती है
लेकिन एक बेटा को मां भी बोझ दिखती है
क्यो प्राणप्रिया ही सर्वस्व दुनिया है
आखिर क्यों ?, आखिर क्यों ?, आखिर क्यों ?
क्या यही ममता का प्रतिफल है ?
तू ही मेरी मदर टेरेसा की महिमा
तू ही मेरी जन्नत की दुनिया है
मैं तेरा संसार हूं, तू हमारी छाया
ओ मेरी मां, ओ मेरी मां, ओ मेरी मां


**वरुण सिंह गौतम


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