कलम कविता


अब कलम टूट पड़ेगी , 
अन्यायों  के  खिलाफ ।
भ्रष्टाचार  के उपद्रव  से ,
अब  चुप  नहीं  बैठेंगे ।
धर्म - अधर्म के मतभेद नहीं ,
अत्याचारों  का  आतंक  है ।
पिता-पुत्र में अंतरभेद नहीं ,
जहां जाए कलयुगी विनाश है।
हम कर्तव्यपरायणता भूल रहे ,
भूल रहे महाकाव्यों का सार ।
घूसखोरी की अतिभय  से ,
दीन - हीन तड़प रहे हैं ।
 क्या है ? , क्या होगा जमाना ?
ईश्वर  भी  आश्चर्य  है ।
सत्य - झूठ के अंतरभेद नहीं ,
पैसों के बल से बिक जाते हैं ।
दोषी, निर्दोषी बन जाते हैं ,
 फंस जाते हैं निस्सहाय ।
न्याय - अन्याय दिखावा है ,
सत्यमेव जयते है मिथ्या ।

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