क्या नाम दूँ?
मैंने जितना तुम्हें चाहा,
तुम्हें उतना ही दूर पाया
बेइंतहा है तुम्हें चाहा,
मगर बात ये तुमसे
कह न पाया
बढ़ती आश को कैसे
आराम दूं...
इस चाहत को मैं
क्या नाम दूं....?
बड़ी-बड़ी बातें हमें
नहीं है आते...
हम तो जरा सा मुस्कुरा कर भी,
इन आंखों से ही
बहुत कुछ हैं कह जाते
इससे ज्यादा और क्या अरमान दूं,
तुमसे दिल्लगी को मैं
क्या नाम दूं....?
हाथों में हाथ डालकर किए,
न जाने कितने ही वादे
ख्वाब सब तोड़ दिए,
बस रह गए हम आधे
भूल जाऊं तुझे....?
क्या अब.....
इस दिल को यह फरमान दूं.....?
तू ही बता...
इस रिश्ते को ....
मैं क्या नाम दूं...?
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