जीवन का राग
जीवन का राग संगीत है
जीवन का अस्तित्व अतीत है
प्रकृति रूपी अपनी धरा
संपदा जहां भरपूर है
मानवता का जीवन ही
मानव कल्याण का स्वरूप है
मानव, मानव के हमदर्दी
यहीं प्रेम और आस है
प्रकृति का यहीं अलंकृत काया
अपना - अपना रूप है
पर्वत - पहाड़ - मैदान - सरोवर
यहीं हिमालय का रूमानी है
जहां विधाता की अद्भुत माया
यहीं विधान अविनाशी अभेदी है
**वरुण सिंह गौतम
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