आया जो,वो आएगा

जिसका पदार्पण हो भव में
आज न कल वो जाएगा ही
कोई न उच्छिष्ट इस जग में
चाहे मनुज हो या यातुधान ।

हर चीज का इतिश्री जहां में
कीट- पतंग हो या हम मनुज
कोई न रहता शेष यहां पर
सबका निर्वाण तय भव में।

भास्कर का जब होत ब्याज
अस्त होना भी होत यथार्थ
जब मनुष्य को होती क्षोभ
उसे हर्षित होना भी निश्चित ।

करुणा-करुणा आते भव में
व्यथा – व्यथा जाते जग से
जिसका उद्भव हुआ विश्व में
उसका पंचत्व तय संसृति में।

कवि :- अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार

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