अशक्त परिंदा


मैं एक सहृदय, अनभिज्ञ
तन्वी, कृशांगी सा परिंदा
फस गया बंदी आलय मे
कैसे बचू ? कैसे निकलू ?
दुर्गति भारी इस कैद से।

मै एक बालसुलभ सा
अल्पवयस्क ही परिंदा
किसी ने हम पे कर जादू
खंडन रहता हमसे कृत्य
क्या करू ? कैसे बचू ?

मैं एक मृदुल – मार्मिक
दैनय, कृपालु सा परिंदा
क्रश गया इस चहला में
निकालने का पंथ हमें
दिखता हमें न दूर – दूर ।

मैं एक नाबालिग सा
अल्पागुलफ़ाम परिंदा
बंध गया साँकल से
टूट न रही ये कटके !
क्या करू ? कैसे टोरू ?

मैं एक तनु, कृशांगी
अशक्त सा परिंदा
मेरी लब्ध का कोई
उठता रहता अधिगम
दूर तक न दिखता पंथ ।


✍️✍️✍️ अमरेश कुमार वर्मा

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