पावस-गीत

अम्बर के गृह गान रे, घन पाहुन आये।

इन्द्रधनुष मेचक रुचि हारी,
पीत वर्ण दामिनि द्युति न्यारी,
प्रिय की छवि पहचान रे, नीलम घन छाये।

वृष्टि विकल घन का गुरु गर्जन, 
बूँद - बूँद में स्वप्न - विसर्जन, 
वारिद सुकवि समान रे, बरसे कल पाये।

तृण, तरु, लता, कुसुम पर सोयी, 
बजने लगी सजल सुधि कोई, 
सुन - सुन आकुल प्राण रे, लोचन भर आये।

१९४७ ई०

रामधारी सिंह दिनकर

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