दुखो की नैया

ये जग सुख- दुख के
उभय से है भरा हुआ
जब कोई स्वजन हमें
देती है हमें मक्कारी
तब होती उद्गत, निर्गत
दुखों की नैया जग में ।

खलक में जब कोई निज
इस क्षिति से कोई श्रृंग पे
ले जाकर छोड़ देता हमें
तब हमको कोई स्वजन
पारक्य न दिखता है हमें
तब बहती दुखों की नैया।

कोई स्वजन ही जब हमें
भाई-बंधु हो या मित्र-सखा
जिनके साथ रहते हर क्षण
साथ – साथ खेलते जिनके
वो जब हम से करता कपट
तब बहती दुखों की नैया ।

जब कोई अपना सहजात
पार्श्ववर्ती हो या कोई हितैषी
जिसको हम मानते बिम्ब
जिनसे आज तक न छिपाई
कोई जिह्वा हमसे, वो करे छल
तब निज बहती दुखों की नैया ।

कवि :- अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार

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