बुरी आदत


बुरी आदत शाश्वत से
करती हमारा है ह्रास
निकृष्ट लत करके तुष्टि
अधम नर बन जाते हम
नित्य कर उत्सर्ग इनका ।

यमुना लत के विविध रीति
किसी भी असिता युक्ति को
करने से होता हम सबों का
कतिपय विभाँति का विनाश
प्रतिध्वनि रहे इनसे पृथक ।

अधम युक्ति की कबूल से
होते कई ह्रास, क्षय हमारे
फिर भी क्या होता जादू ?
जो एक बार कर ले उन्हें
लगती लत, न ट्रस्ट शीघ्र ।

अपद्रव्य युक्ति वाले मानव
चाहे कितना भी हो तेजस्वी
चाहे कितना भी हो विद्वान
वो करे अघ-चूक जैसा कार्य
उनको कहीं न मिलता मान।

अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रामधारी सिंह दिनकर कविताएं संग्रह

मेसोपोटामिया सभ्यता का इतिहास (लेखन कला और शहरी जीवन 11th class)

आंकड़ों का सारणीकरण तथा सारणी के अंग Part 2 (आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण) 11th class Economics