मालवी सम्राट चालीसा

(डॉ प्रह्लादचंद्र जोशी)

गुरु प्रहलाद  नमन करुं, लिखते अक्षर तौल।
मालव भाष सम्राट हैं, व्याकरणा अनमोल।।

जय गुरुदेवा जय प्रहलादा।
पूत शारदा जीवन सादा।।1
मालव भाषा के अधिकारी।
लेख कहानी लिखे विचारी।।2
गूजर गौड़ सद परिवारा।
मां आवंती बेटा प्यारा।।3
पिता प्रभूजी बन हलवाई।
दूर दूर भोजन बनवाई।।4
मार्च पंद्रह अड़तिस आया।
फागुन होली उत्सव छाया।।5
जली होलिका प्रह्लाद आये।
ग्राम कायरा जन हरषाये।।6
उपनयन संस्कार कराया ।
फिर शाला में नाम लिखाया।।7
गुरु माधव ने बाल पढ़ाये।
हिन्दी संस्कृत ज्ञान सिखाये।।8
चिंतामणि को गुरु बनाया।।
कथा मालवी शोध कराया।9
एक सौ साठ केणी पाई।।
लोक मालवी कथा सुहाई।10
सुआ नगर का मंडल आगर।
गीत कहानी का है सागर।।11
सारे ग्रंथा है बाईसा।।
सभी विधा में बनते धीसा।।12
शिक्षक जीवन आप बिताया।
नवाचार भी खूब चलाया।।13
फिर इक अवसर ऐसा आया।
एक साल कॉलेज पढ़ाया।।14
सीधे सादे भोले भाले।
धोती कुर्ता चश्मा वाले।।15
भाष मालवी रंग रंगीले।
पान चाय के बड़े रसीले।।16
दुर्गा के संग ब्याह रचाया।
पत्नी देवी साथ निभाया।।17
घर वाली को खूब मनाते।
कभी कभी पकवान बनाते।।18
दया ज्ञान के तुम भंडारी।
गुरु बलिहारी विद्या धारी।।19
प्रथम लेख सत्तावन आया।
नई दुनिया में धूम मचाया।।20
सुसनेरा इक झांकी लेखा।
सारी जनता ने भी देखा।।21
ग्रामी जीवन उच्च विचारा।
भाष मालवी  लेखनहारा।।22
कथा लोक की हृदय समाई।
एक एक को आप सुनाई।।23
फिर उन सबका क्रम समझाया।
महा शोध रचि ग्रंथ बनाया।।24
ग्यारस माता तेजा छल्ला।
राधा गूजरी शनि अहिल्या।।25
कहानी चतुर राजकुमारी।
नाग दुलाजी सोरठ कंवरी।।26
माल्वी हिन्दी कोष बनाये।
चौबिस सहस अर्थ बताये।।27
हिन्दी स्वर्ण काल की धरती।
गणपति वंदन गुरु की मरजी।।28
रामेश्वर गुरु रहें बकानी।
जिन पे निष्ठा मन में आनी।।29
जीवन की जब यादे आई।
स्वामीजी का शतक रचाई।।30
व्याकरण मालवी भी लेखा।
चार भाग मे रचा विशेषा।।31
उमठा सौधी अरु रजवाड़ी।
चौथी उप है भील निमाड़ी।।32
ओकारांता  आप  बताया।
अवयव प्रत्यय भी समझाया।।33
मालव शिक्षण भाष बनाया।
सौंधवाड़ विस्तार रचाया।।34
व्याकरणकार आप कहाये।
शब्द सम्राट उपाधि पाये।।35
शब्दों के तुम हो जादूगर।
बोल मालवी के सौदागर।।36
शोध गोष्ठी में भी जाते।।
शोध पत्र भी बांच सुनाते।।37
जीवनी नवनीत ने गाई।
रईस खान शोध रचाई।।38
बारह नवंबर सहस एका।
धनतेरस को अंतिम लेखा।।39
जय जय जोशी जगअभिनंदन।
मालव माटी करती वंदन।।40

मालव भाष‌ शिरोमणी, लोक कहानी कार।
कथा मालवी शोध की,पाई उपाधि चार।।

लेखक :- डॉक्टर श्री दशरथ मसानिया

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