राह भटके के बच्चे को

जाड़े की रात
पहाड़ पर रो रहा है एक हिरन 
खेल में मदमस्त
भटक गया है वह राह

वह नन्हा हिरन
उसके लिए बहुत दुखी हूँ, मैं 
उसकी दो खुली आँखों में
वेदना है कितनी !

हिरन के छौने रे, हिरन के छौने 
रो मत, सो जा आराम से
जरूर मिलेगी तेरी माँ तुझे। 
सो जा, सो जा

बाँस के वन, पाइन ऑक के वन
रात की हवा
तुझे लोरी सुना रहे हैं! 
डर मत, बेहिचक सो जा

आकाश में हैं तारे भरे
नीचे झरे
ढेर के ढेर पत्ते
कितने नरम हैं।
हिरन के छौने, सो जा !

सो जा सुबह तक
सूरज उगेगा
उसकी सुनहरी किरणें
छुएँगी जंगल के पत्तों को
मिल जायेगी तुझे तेरी माँ 
रो मत, मत रो, नन्हे हिरन

कवि -डा०नि० (वियतनाम)

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