यशस्विनी
मत उसके नम को छीनो तुम,
मत तोड़ो उसके सपनों को।
वह दान दया की वस्तु नहीं,
वह जीव नहीं वह नारी है।
अगर कर सकते हो कुछ भी तुम,
तो कुछ न करो- यह कार्य करो।
जो चला गया पर अब जो है,
उसको संवारना आर्य करो ।
क्या दादी-नानी चाची-माँ।
बस यह बनकर है रहने को?
निर्जीव नहीं, वह नारी है
उसे टेरेसा बन जीने दो,
उसे इंदिरा बन जीने दो।
हाँ तोड़ो उस बेड़ी को जरा
जिसमें नफरत की कड़ियाँ हैं
फिर पंखों को खुल जाने दो
उसे कल्पना बन जीने दो,
उसे लता बन जीने दो
पग-नुपूर कंगन- हार नहीं
तुम विद्या से शृंगार करो
तुम खुद अपना सम्मान करो
अपना नारीत्व स्वीकार करो।
कवियत्री :- बेबी रानी
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