जग


आये हो तो इस भव में
कुछ करके ही जाओ
यूं ही लाखों नर जग में
आते तो जाते – रहते ।

कुछ खास न करने से
कौन करेगा सँवर हमें ?
लाखों मनुज की भांति
विस्मृत कर देगी संसार।

इस जग का खेल देखो
धनीवान हो रहे समृद्ध
धनमंद की माया देखो
दिन -रात हो रहे है रंक।

किसी ने सार ही कहा है
रंक उद्भव होना न गुनाह
रंक ही परलोक में व्रजना
यह है बिल्कुल ही गुनाह ।

ये भव का खेल अनोखा
चलता रहता न एक जैसा
वक्त वक्त की बात है बस
वक्त ना रहता एक जैसा ।

अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार

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