लोभ


आज लोभ का जमाना
पदार्पण कर चुका कब !
कांक्षा के कारण ही हमें
करता कोई हमें अवलंब ।

आज के इस जहान में
तृषा की संख्या बढ़ गई
अपनी हद के लिए हम
कर देते क्षति किसी की।

आज निरंतर मानुष अब
धन – दौलतो के ही चलते
हो रहे लिप्सा मौकापरस्त
सदा रहे इनसे पृथक हम ।

आज मानव कई चीजों
धन- दौलत, भोग-विलास
सबके लिए करते स्पृह
कभी भी न करें तृष्णालु ।

आज देखो लोगों का खेल
श्रम करना न चाहता कोय
फरेब करके के वो हमेशा
करता रहता धन को अर्जित ।

अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार


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