चन्द्राह्वान


जागो हे अविनाशी ! 
जागो किरणपुरुष ! कुमुदासन विधु मण्डल के वासी !
जागो हे अविनाशी !

रत्न - जड़ित - पथ - चारी, जागो, 
उड्डु - वन - वीथि - विहारी, जागो,
जागो रसिक विराग - लोक के, मधुवन के संन्यासी ! 
जागो हे अविनाशी !

जागो शिल्पि अजर अम्बर के ! 
गायक महाकाल के घर के !
दिव के अमृतकण्ठ कवि, जागो, स्निग्ध - प्रकाश - प्रकाशी। जागो हे अविनाशी !

विभा सलिल का मीन करो हे !
निज में मुझको लीन करो हे !
विधु - मण्डल में आज डूब जाने का मैं अभिलाषी! 
जागो हे अविनाशी !

१९४६ ई०

रामधारी सिंह दिनकर

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