कबीर के पद


                         (1)

मेरा तेरा मनुआँ कैसे इक होई रे।
मैं कहता हाँ आँखिन देखी, तू कहता कागद की लेखी। 
मैं कहता सुरझावनहारी, तू राख्यौ उरझाई रे।
मैं कहता तू जागत रहियो, तू रहता है सोई रे। 
मैं कहता निर्मोही रहियों, तू जाता है मोही रे।
जुगन-जुगन समुझावत हारा, कही न मानत कोई रे। 
सतगुरु धारा निर्मल बाहै, वाम काया धोई रे। 
कहत कबीर सुनो भाई साधो, तब ही वैसा होई रे।

                           (2)

मोको कहाँ ढूंढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना में देवल ना मैं मस्जिद, न काबे कैलास में । 
ना तो कौनों क्रिया करम में नाहिं जोग बैराग में। 
खोजी होय तो तुरतहि मिलिही, पलभर की तलास में। 
कहै कबीर सुनो भाई साधो, सब साँसों की साँस में।

कवि:- कबीरदास

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