निमन्त्रण (सामधेनी से)
तिमिर में स्वर के बाले दीप आज फिर आता है कोई।
'हवा में कब तक ठहरी हुई
रहेगी जलती हुई मशाल ?
थकी तेरी मुट्ठी यदि वीर,
सकेगा इसको कौन सँभाल ?'
अनल - गिरि पर से मुझे पुकार राग यह गाता है कोई ।
हलाहल का दुर्जय विस्फोट,
भरा अङ्गारों से तूफ़ान,
दहकता - जलता हुआ खगोल,
कड़कता हुआ दीप्त अभिमान ।
निकट ही कहीं प्रलय का स्वप्न मुझे दिखलाता है कोई।
सुलगती नहीं यज्ञ की आग,
दिशा धूमिल, यजमान अधीर ;
पुरोधा कवि कोई है यहाँ ?
देश को दे ज्वाला के तीर ।
धुओं में किसी वह्नि का आज निमन्त्रण लाता है कोई ।
१९४४ ई०
रामधारी सिंह दिनकर
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