अगेय की ओर ( रसवन्ती से )

गायक, गान, गेय से आगे 
मैं अगेय स्वन का श्रोता मन ।

          (१)

सुनना श्रवण चाहते अबतक 
भेद हृदय जो जान चुका है ; 
बुद्धि खोजती उन्हें जिन्हें जीवन 
निज को कर दान चुका है। 
खो जाने को प्राण विकल हैं 
चढ़ उन पद - पद्मों के ऊपर 
बाहु - पाश से दूर जिन्हें विश्वास  
हृदय का मान चुका है।

जोह रहे उनका पथ दृग, 
जिनको पहचान गया है चिन्तन । 
गायक, गान, गेय से आगे 
मैं अगेय स्वन का श्रोता मन ।

            (२)

उछल - उछल बह रहा अगम की 
ओर अभय इन प्राणों का जल; 
जन्म - मरण की युगल घाटियाँ 
रोक रहीं जिसका पथ निष्फल ।

मैं जल- नाद श्रवण कर चुप हूँ; 
सोच रहा यह खड़ा पुलिन पर;
है कुछ अर्थ, लक्ष्य इस रव का
या 'कुल कुल, कल कल' ध्वनि केवल ?

दृश्य, अदृश्य कौन सत् इनमें ? 
में या प्राण - प्रवाह चिरन्तन ? 
गायक, गान, गेय से आगे 
मैं अगेय स्वन का श्रोता मन ।

             (३)

जलकर चीख उठा वह कवि था, 
साधक जो नीरव तपने में ; 
गाये गीत खोल मुँह क्या वह 
जो खो रहा स्वयं सपने में ? 
सुषमाएँ जो देख चुका हूँ 
जल - थल में, गिरि, गगन, पवन में, 
नयन खोज मूँद अन्तर्मुख जीवन 
रहा उनको अपने में ।

अन्तर्- वहिर् एक छवि देखी, 
आकृति कौन ? कौन है दर्पण ? 
गायक, गान, गेय से आगे 
मैं अगेय स्वन का श्रोता मन ।

         (४)

चाह यही छू लूँ स्वप्नों की 
नग्न कान्ति बढ़कर निज कर से; 
इच्छा है,  आवरण स्त्रस्त हो
गिरे दूर अन्तः श्रुति  पर  से ।

पहुँच अगेय - गेय - सङ्गम पर 
सुनूँ मधुर वह राग निरामय, 
फूट रहा जो सत्य सनातन 
कविर्मनीषी के स्वर - स्वर से । 

गीत बनी जिनकी झाँकी, 
अब दृग में उन स्वप्नों का अंजन। 
गायक, गान, गेय से आगे 
मैं अगेय स्वन का श्रोता मन ।

१९३७ ई०
रामधारी सिंह दिनकर

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रामधारी सिंह दिनकर कविताएं संग्रह

आंकड़ों का आरेखी प्रस्तुतीकरण Part 3 (आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण) 11th class Economics

मेसोपोटामिया सभ्यता का इतिहास (लेखन कला और शहरी जीवन 11th class)