कबीर के दोहे
काल्ह करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में परलै होयगी, बहुरि करेगा कब ।।
साँईं इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय ॥
निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय ।
बिन साबुन पानी बिना, निरमल करे सुभाया।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।
सोना, सज्जन, साधुजन, टूटे जुरै सौ बार।
दुर्जन, कुंभ-कुम्हार कै, एकै धका दरार।।
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय।
जो दिल खोजा आपनो, मुझ सा बुरा न कोय।।
लेखक :- कबीर
टिप्पणियाँ