कर्मवीर
देखकर बाधा विविध बहु विग्न घरात नहीं।
रह भरोसे भाग के दुख भोग पडताते नहीं।
काम कितना ही कठिन हो किंतुकता नहीं।
भीड़ में चंचल बने जो धीर दिखलाते नहीं।
हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले ।
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूल-फते ॥
आज करना है जिसे करते उसे में आज ही।
सोचते- कहते हैं कुछ कर दिखाते हैं वहीं ।।
मानते जी की है, सुनते है सदा सबकी कही ।
जो मदद करते हैं अपनी इस जग में आप ही ।।
भूलकर वे दूसरों का मुंह कभी तकते नहीं ।
कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं।।
जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं।
काम करने की जगह बाते बनाते है नहीं।
आज-कल करते हुए जो दिन गंवाते हैं नहीं।
यत्न करने में भी जो जी चुराते है नहीं।
बात है वह कौन जो होती नहीं उनको किए ।
वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए ।।
चिलचिलाती धूप की जो चाँदनी देवें बना।
काम पड़ने पर करें जो शेर का भी सामना ।।
जो कि हँस-हंस के चचा सेते हैं लोहे का चना ।
'है कठिन कुछ भी नहीं' जिनके है जी में यह ठना ।।
कोस कितने ही चलें, पर कभी थकते नहीं।
कौन-सी है गाँठ जिसको खोल वे सकते नहीं।।
काम को आरम्भ करके यों नहीं जो छोड़ते
सामना करके नहीं जो भूलकर मुँह मोड़ते ॥
जो गगन के फूल बातों से वृथा नहीं तोड़ते।
संपदा मन से करोड़ों की नहीं जो जोड़ते।
बन गया हीरा उन्हों के हाथ से है कारबन।
काँच को करके दिखा देते हैं वे उज्ज्वल रतन ॥
पर्वतों को काटकर सड़कें बना देते हैं वे।
सैकड़ों मरुभूमि में नदियाँ बहा देते हैं वे ॥
गर्भ में जल-राशि के बेड़ा चला देते हैं वे।
जंगलों में भी महामंगल रचा देते हैं वे ॥
भेद नभ-तल का उन्होंने है बहुत बतला दिया।
है उन्होंने ही निकाली तार की सारी क्रिया।
कार्य-स्थल को वे कभी नहीं पूछते 'वह है कहाँ'।
कर दिखाते हैं असंभव को भी संभव वे वहाँ।
उलझनें आकर उन्हें पड़ती हैं जितनी ही जहाँ ।
वे दिखाते हैं नया उत्साह उतना ही वहाँ।
डाल देते हैं विरोधी सैकड़ों ही अड़चनें ।
वे जगह से काम अपना ठीक करके ही टलें ॥
सब तरह से आज जितने देश हैं फूले-फले।
बुद्धि, विद्या, धन, विभव के हैं जहाँ डेरे डले ।।
वे बनाने से उन्हीं के बन गए इतने भले।
वे सभी हैं हाथ से ऐसे सपूतों के पले।
लोग जब ऐसे समय पाकर जनम लेंगे कभी।
देश की औ' जाति की होगी भलाई भी तभी।
कवि -अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
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