बिहारी के दोहे
काल के प्रतिष्ठित शृंगारिक कवि बिहारी के दोहे गागर में सागर हैं। वैसे तो बिहारी प्रेम वि के रूप में हैं, पर उनके भक्ति और नीतिपरक दोहों को भी व्यापक यता मिली। इस पाठ में उनके द्वारा रचित तीनों तरह के दोहे शामिल हैं।
मेरी भव बाधा हरी राधा नागरि सोय।
जा तन की झाई परै स्यामु हरित दुति होय।
जपमाला, छापै, तिलक सर न एकी कामु।
मन-काँचे नाचे वृथा, साँचै राँचै रामु ॥
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सोहँ करें भौं हनु हँसै दैन कहे नटि जाइ ||
जब-जब वै सुधि कीजियै, तब तब सुधि जाँहि ।
आँखिनु आँखि लगी रहें, आँखें लागति नाँहि ।।
नर की अरु नल नीर की गति एकै करी जोय ।
जेतो नीची हवै चलै तेतो ऊँचो होय ||
संगति सुमति न पावही परे कुमति के धन्ध ।
राखौ मेलि कपूर में हींग न होत सुगंध।
बड़े न हूजै गुनन बिनु, बिरद बड़ाई पाय।
कहत धतूरे सो कनक, गहनो गढ्यो न जाय।।
दीरघ साँस न लेहु दुख, सुख साईं हि न भूल ।
दई दई क्यौं करतू है, दई दई सुकबूलि ।।
कवि:- बिहारी
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