पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं मैं सुरवाला के
गहनों में गूंथा जाऊँ ।
चाह नहीं प्रेमी माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ ।
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि, डाला जाऊँ।
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढ़ूं, भाग्य पर इठलाऊं ॥
मुझे तोड़ लेना वनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शोश चढ़ाने
जिस पथ जाएँ वीर अनेक |
कवि :- माखनलाल चतुर्वेदी
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