परशुराम कर्ण संवाद


राजवंशी  सूर्य अंगज कर्ण
कुंती अंगज होकर भी
राधा को धात्री बतलाते हो
सुत अंगज कहलाते हो।

तू अश्रद्धालु,जलीय, कपटी
ब्राह्मण का बाना धारण कर 
दग से खर बनाकर हमको
आयुद्य  विद्या पाते हो।

कब तक खर बनाओगे
स्वर्ग में नहीं,नरक में जाओगे
तुमसे न्यून बलशाली भी
तुझको शिकस्त दे जाएगा।

इस मूढ़ता का तुम्हें
सकल कर्ज चुकाना होगा
एक दिवा इसी सबब तू
शर - शय्या पर मृत पड़ा होगा।

परशुराम का श्राप था कर्ण को
कि जीवन की सर्वोत्तम बड़ी संग्राम में
दगा से प्राप्त विद्या भूल जाएगा तू
रण में तेरे रथ का पहिया
धरती में अर्द्ध धस जाएगा।

परशुराम रोष में आकर
दिया कर्ण को श्राप
इस  श्राप को भुगत
सर्वोत्तम बड़ा रण हारा वो।

परशुराम की सत्यता का
अतीत के पन्नों में विख्यात है
पलट कर देखो महाभारत को
अर्जुन से कर्ण रण में हारा था।


लेखक : - उत्सव कुमार वत्स
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार

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