हमने देखा है
आकाश के आंचल में
कामनाओं के पंक्षी को
उड़ते हमने देखा है ।
दिल्ली को सज - धजकर
छब्बीस जनवरी के दिन
दुल्हन बनते देखा है ।
लाल किले पर समता की
बातें होती रहती हैं पर
घोर गरीबी हमने देखी है ।
विकास की बातों को तो
हाथी के दांत बनाते
राजनेताओं को देखा है ।
बाहर भीड़ संसद सुनसान
भ्रष्टाचारियों - आतंकी को
हल्ला करते देखा है ।
सत्ता की हम अंधेरी गली में
गूंगे - बहरे लोगों को
उपलब्धियां गिनते देखा है ।
देश की रक्षा के सौदों पर
राजनेताओं को हमने
दलाली खाते देखा है ।
शोभा है फुटपाथ पर
भारत के जनतंत्र को तो
सड़कों पर हमने देखा है ।
मजदूरों को पटरी पर
अपनी गर्दन रखकर सोते
हमने देखा है ।
शहर - शहर , डगर - डगर
जलियांवाला बाग की
घटना घटते देखा है ।
अखबारों की आंखों में
अफवाहों की आग को
धधकते हमने देखा है ।
आदमी में आदमियत नहीं
उनको गिरगिट जैसा
रंग बदलते देखा है ।
जवानी बलिदान मांगती
पार्टी कुर्बानी मांगती
समर भूमि में देखा है ।
कम्युनिस्टों को हमने
पार्टी हित खातिर
बलिदान होते देखा है ।
टिप्पणियाँ