आशा की डोर
अजनबी को जब देखा था
दिल कहता था प्यार कर लूं
भाव उठे थे मन में मेरे
सूरत उसकी दिल में भर लूं
मंजरों से लदी आम्र टहनियां
इठलाती थी उसकी जवानियां
मुस्कुराहट में थी सुगंध भरी
जैसे खिली हजारों कलियां
आवाजें उसकी पड़ी कानों में
कलरव करतीं नभ में चिड़िया
आनन्दित हो गुनगुना उठा था
अपनी ही कविता की कड़ियां
मन के दर्पण पर हर वक्त मेरे
उसकी अक्स छाया रहता है
हर सोच सिमट कर मेरे
उसकी यादों में खो जाता है
आंखें जब चार हुई थीं
होठ मेरे खुल ना सके थे
मन में कसक बनी रही मेरे
प्यार का इजहार कर ना सका
यादों के जब बादल छाते
मन मयूर नाच उठता था
जब सूरज नभ में उगता है
आशा की किरणें ने जग जाती हैं
आएगी एक दिन वह
प्राण बन मेरे जीवन में
आशा की डोर में मेरी
यह जिंदगी बंधी है ।
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