धन की देवी



मैं लक्ष्मी हूं धन की देवी,
किसने मुझे था जन्म दिया ?
कौन मुझे था पाला पोसा,
किसने मुझे था बड़ा किया ?


तब पहचान नहीं थी पिता की,
वह मातृ सत्ता का युग था ।
जब नारी आदि शक्ति थी,
पुरुषों पर शासन करते थे ।


जब पुरुष विजयी हुआ,
शादी की प्रथा तभी चली ।
जब नारी ने किया समर्पण,
उसे केवल तिरस्कार मिला ।


समुंद्र से जब मैं निकली थी,
तब मेरी भरी जवानी थी ।
बहु बनी पुरुष पुरातन की,
मैं चंचला कहलायी थी ।


मैं जब स्वयं हुई समर्पित,
मुझे चरणों में स्थान मिला ।
अंकशायनी बनने को आतुर,
पर मुझे न कभी सम्मान मिला ।


मैं अवतार आदि शक्ति की,
उपेक्षा ने मुझे कुंठित कर दिया ।
अतृप्त वासना के कारण,
मैंने मानव में तृष्णा भर दिया ।


जग में धन की ऐसी होड़ चली,
मानव - मानव का शत्रु हो गया ।
धन के खातिर मानव सब,
पशुओं से भी बदतर हो गया ।


कोई नेता हो या अभिनेता,
सब को मैंने धन से भर दिया ।
खिलाड़ी को मुंहमांगा दिया,
युवकों ने ताली से संतोष किया ।


संसार बना काला बाजार,
होता वायदा - शेयर का व्यापार ।
घूसखोरी और घोटालों में,
मैं धन की वर्षा करती हूं ।


प्रकाश में मेरी पूजा होती है,
वाहन मेरा अंधा हो जाता है ।
कहीं नहीं मैं जा पाती हूं,
अंधेरे में धन बरसाती हूं ।
मैं धन की देवी लक्ष्मी हूं ।

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