स्वप्न का अंत
कजरारी आंखें मुस्कुराते होठ
जब मैंने तुमको देखा था
तेरी काली - काली जुल्फों में
दिल मेरा उलझ गया था ।
जब - जब तुम देखती थी
आंखें कुछ कहने लगती थी
देख निमंत्रण आंखों में
मैं व्याकुल हो उठता था ।
जब हम दोनों मिलते थे
आंखें सब कुछ कह देती थी
होठ दोनों बंद रहते थे
दिल की कलियां खिलती थीं ।
आज मैं कहां तुम कहां
जिंदगी बोझ बन गई है
जिस रास्ते से आती - जाती थी
वह राह मुझे घूर रही है ।
थक गयी हैं आंखें मेरी
थक गया मेरा दिल है
उम्मीदों पर पानी फिर गया
सपने दरिया में डूब रहे हैं ।
तेरी आंखों में था अमृत
मेरी आयु बढ़ जाती थी
इच्छाओं के अश्रु बढ़ रहे हैं
जीने की उम्मीदें घट रही हैं ।
सिमर के फूल जब देखता हूं
दिक् की आग भभक उठती है
पत्तों का दिल धड़कता है
होठ उम्मीदों में फड़कते हैं ।
अंधेरी गुफा में उतर रहा हूं
जुगनू भी नहीं अलख जगाते हैं
रात के अथवा दरिया में मेरी
जीवन की किश्ती डूबी रही है ।
दिल टूट गया है मेरा
नहीं जीने का कोई सहारा
इच्छाएं सब मर गयी हैं
अरमान सब लहूलुहान है ।
सपना से ही मानव जीवन है
सपना ही जीवन का आधार है
जिसके पास सपना नहीं
उसका जीवन बेकार है ।
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