आजादी की चाह



आजादी की चाह लिए मैं, 
युग-युग से भटक रहा हूं ।
न जाने कब से गुलामी की,
 जंजीरों में बंधता आ रहा हूं ।
 अब तक मिली नहीं आजादी,
 युग-युग से लड़ता आ रहा हूं ।
 आजादी की चाह लिए मैं,
 युग-युग से भटक रहा हूं।


 जब सुना देश हुआ आजाद,
 दौरा स्वागत में, जुबान कट गयी ।
 झूठे मुकदमे में फंसा दिया,
 कलम उठाई हाथ कट गया ।
बोलने और लिखने पर रोक लगी,
 आजादी रूठकर चली गयी ।
 आजादी की चाह लिए मैं,
 युग-युग से भटक रहा हूं ।


जुलूस निकला आगे बढ़ा,
 लाठियां चली टांग टूट गयी ।
 जब मैंने पीछे मुड़ना चाहा,
 उसने पीठ पर मारी गोली ।
शातिर नक्सली बताकर,
 फर्जी मुठभेड़ में मार दिया ।
आजादी की चाह लिए में,
युग-युग  से भटक रहा हूं ।


जब-जब आगे बढ़ना चाहा,
 तब-तक पीछे धकेल दिया।
मैंने आजादी को प्यार किया,
 वह अमीरों के घर चली गयी ।
 मेरे मासूम दिल टूट गया,
 वह लेन-देन में फंस गयी ।
आजादी की चाह लिए में,
युग-युग  से भटक रहा हूं 


जिस नेता पर विश्वास किया,
 उसने ही मुझे धोखा दिया ।
जिस दल को दीवाल बनाया,
 वहीं हड़हड़ा कर ढह गया ।
यह दुनिया सदा रही अमीरों की,
  हम गरीब सदा पिसते रहे ।
आजादी की चाह लिए में,
युग-युग  से भटक रहा हूं ।


आजादी के घर जाना चाहा,
बाहुबलियों ने रोक दिया ।
 हमारे भाग सितारे डूब गए,
 जिंदगी बनी अंधेरी गुफा ।
ऐ सूरज कुछ किरणें उधार दो,
 अंधेरी गुफा में उसे छिड़क दो 
आजादी की चाह लिए में,
युग-युग  से भटक रहा हूं ।


 सूरज की किरणे बोल उठी,
 संघर्ष करो केवल संघर्ष करो ।
जब शत्रु तेरा हार रहा था,
 तब तुमने समझौता कर लिया ।
बादल ने जब गंदा पानी बरसाया,
 बिन लड़े, कपड़ा उठाकर बच गए ।
आजादी  की   चाह   लिए   मैं,
 युग - युग  से    भटक   रहा  हूं ।


तुम समुद्र में डुबकी लगाओ,
 पर्वतों को तुम रौंद डालो ।
बाहुबलियों की बंदर घुड़की,
रह-रह तुझे डराती है बिजली ।
बिजली कड़क से डरना क्या ?
तुम चक्रवातों का मुंह तोड़ दो ।
आजादी  की  चाह  लिए  में,
युग-युग  से  भटक रहा  हूं ।


तूफानों को तुम दो चुनौती,
पुणे अपनी राह बदलनी होगी ।
  तुम अपना माहौल बनाओ,
 अपना नया संसार बसाओ ।
 अमीरों के घर से निकाल कर,
आजादी को लौटा लाओ ।
आजादी  की  चाह  लिए  में,
युग-युग  से  भटक रहा  हूं ।


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