छठ व्रत
मातृ सत्ता का जब युग था
माता ही सब कुछ होती थी
मिट्टी की मूर्ति बनाकर
माता की पूजा करते थे
आदिशक्ति भगवती की
द्रविड़ भी पूजा करते थे
नील नदी से सिंधु नदी तक
मां भगवती का क्षेत्र था
बिहार में नागवंशियों का
फैला हुआ साम्राज्य था
वह सभी निष्ठापूर्वक
षष्ठी माता की पूजा करते थे
ऋषि पत्नी सुकन्या ने
छठ पूजा की विधि सीख ली
माता की पूजा करने से
ऋषि का कुष्ठ छूट गया
नागवंशीयों में थी मातृ सत्ता
आर्यो में थी पितृसत्ता
दोनों का जब मिलन हुआ
आर्य भी पूजा करने लगे
यह पूजा है माता की
माता की पूजा करती हैं
संतान के कल्याण के लिए
देवी से वरदान मांगती हैं
छठ माता हैं बिहार की
बिहार में ही पूजा होती है
सूरज के कई मंदिर बने हैं
छठ माता का कोई मंदिर नहीं
डाला का अर्घ्य दिया जाता है
कर नमन सूरज को साक्षी बनाते
डाला में रहता है फल पकवान
और आता है लहठी-सिंदूर-पान
आर्यो के सभी पूजाओं में
पुरोहित का रहना आवश्यक है
पर षष्ठी माता की पूजा में
पुरोहित का कोई काम नहीं
सूरज प्रतीक हैं पुरुष के
छठ माता प्रतीक है नारी के
जल चढ़ाते डाला पर
गाते हैं गीत छठ मैया के
पुरुष का महत्व बढ़ाने
महत्त्व देते हैं सूरज को
अगर होती पूजा सूरज की
तो देश भर में मनाया जाता
यह सूर्योपासना की पूजा नहीं
यह पूजा है षष्ठी माता की
स्वस्थ जीवन के लिए
हम करते उपासना छठ की
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