सुनो एक कहानी
सुनो-सुनो एक कहानी, है यह सत्तर वर्ष पुरानी,
छब्बीस जनवरी के दिन
भारत में जनतंत्र आया था
मिट गयी अंग्रेजी सत्ता
थी वह शतवर्ष पुरानी
सुनो - सुनो एक कहानी।
सोए सपने जाग उठे थे
आस जगी खुशहाली की
मिटा नहीं दुख -दर्द जन का
बढ़ती चली गयी परेशानी
सुनो - सुनो एक कहानी।
मीडिया नेता अधिकारी
पी गए रस जनतंत्र का
पद - पैसा पाकर तीनों
करने लगे सभी मनमानी
सुनो - सुनो एक कहानी।
जनतंत्र बना भ्रष्टतंत्र
भ्रष्टतंत्र ने मदद किया
मुस्कुराता आया धनतंत्र
मिट गयी जनतंत्र की निशानी
सुनो - सुनो एक कहानी।
लोग - लाभ के चक्कर में
पड़ा सब शासन तंत्र है
अपराधों को रोकने में
होता है आना-कानी
सुनो - सुनो एक कहानी।
दान और खैरात बांटकर
वोट बटोरा जाता है
राजस्व का बंदरबांट कर
क्या नहीं करता शैतानी ?
सुनो - सुनो एक कहानी।
जन्म-दिवस और मृत्यु -दिवस
देश-दिवस और राज्य-दिवस
दिवस पर दिवस मनाकर
समस्या को है भुलानी
सुनो - सुनो एक कहानी।
हर साल दिवाली आती है
क्या अंधेरा मिट जाता है ?
जनतंत्र दिवस मनाने से
दूर नहीं होती परेशानी
सुनो - सुनो एक कहानी
मतदान का मूल्य लगाकर
जनतंत्र बेचा जाता है
पदचिह्न जिनके पड़े थे
मिट रही उनकी निशानी
सुनो - सुनो एक कहानी।
भूख अशिक्षा बेकारी
सुरसा बन कर खड़ी है
समस्या से समस्या का
निदान करना है बेईमानी
सुनो - सुनो एक कहानी।
भूख का नारा बनाकर
शोषक जनगीत गा रहे
जो विकास गीत गा रहे
उतर रहा उनका पानी
सुनो - सुनो एक कहानी।
सुनो - सुनो एक कहानी
है यह सत्तर वर्ष पुरानी
सुनो - सुनो एक कहानी।
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