शक्तिपूजा




हरवर्ष  दुर्गा  जी  आती  हैं
महिषासुर    को   मारती   हैं
क्या   हुआ  मर  जाता  है ?
मर-मर कर वह जी उठता  है   

घोटालों   का   उद्घाटन  होता  है
भ्रष्टाचार  का  पर्दाफाश  होता  है
विरोधियों और मीडिया उछलते हैं
क्या  दोनों  बढ़ते  नहीं  जाते हैं ?

योजनाएं लागू  किए जाते हैं
विचौलिए   सेंध   मारते   हैं
विकास-विकास चिल्लाने से    
क्या  विकास  हो  जाता  है ?

झाड़-फूंक से महंगी नहीं रुकती
शांति पाठ से हिंसा नहीं  रुकती
बिना  दवा  बीमारी  नहीं  जाती
मांगने से भीख भी नहीं  मिलती

दिवाली धूमधाम  से  आती  है
जगमग-जगमग दीप जलते हैं
स्नेह    जब   जल  जाता   है
अंधेरा     छा       जाता    है

दीप जलाने और सूप पीटने से 
दान  और  खैरात  बांटने   से
गरीबों   के   घरों   में   लक्ष्मी
क्या  अपना   पग  धरती  हैं ?

सूरज   पर    थूकने   से   क्या
अपने मुंह  पर  नहीं  पड़ता है ?
महापुरुषों  को  गाली   देने   से
दुष्टों की लघुता क्या छिपती है ?

पूर्वजों   के   बखान  करने  से
और     राष्ट्रीगीत     गाने   से
देशद्रोहि  देशभक्त  बनता   है ?
पाप छिपाने से क्या छिपता है ?

काला  कानून  और  बंदूक से
क्या   आंदोलन    रुकता है ?
बिना आंच के दाल नहीं गलती
बिना संघर्ष के क्रांति नहीं होती

चतुराई और  व्यवहारिकता में
क्या  भीरूता नहीं   दिखती ?
चमड़ी  बचाकर  भागने  वाले
क्या कायर नहीं  कहलाते हैं ?

शक्ति की देवी बनी माटी की मूरत
चिख-चिख कर रतजगा पूजा है ?
दुष्टों  की  आंखों  में  आंखे  डाल
जीने की रिती बनाना ही  पूजा  है

निजी  संकल्प  के लिए तुम
शक्ति   की   अराधना  करो 
सम्मान से जीने के लिए तुम
मृत्युवरण के लिए तैयार रहो

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