गुब्बारा ( कविता )
गुब्बारा गुब्बारा दिल का प्यारा गुब्बारा
कभी आती है , दुर्गा मेला में तो कभी मेला ठेला में
दिल को भाती , बच्चों को भी भाती , सबको भाती
गुब्बारा के जैसा कोई खिलौना नहीं
गुब्बारा के जैसा कोई साथी नहीं
बच्चे के साथ दिल खोलकर मिल जाती
बच्चे की हर सुख - दुख में साथ देती
गुब्बारा कभी त्रिकोणकार तो कभी गोलाकार
गुब्बारा कभी तो गेंद के जैसा गोल - मटोलाकार
गुब्बारा कभी तो सेव जैसा तो कभी अमरुद जैसा
गुब्बारा कभी रंग-बिरंगे कभी तो लाल पीला या सतरंगा
गुब्बारा मेला के दिन में और मनोरम बनाती
क्योंकि मेला के हर बच्चों को दिल खुश करती
गरीब से गरीब बच्चे इससे रूबरू रहते
क्योंकि इसकी कीमत बहुत सस्ती रहती
गुब्बारा चलती आ रही खिलौना का रूप है
कल मेरे पिताजी , आज हम , कल मेरे बच्चे
गुब्बारा से सबको रूबरू होना पड़ता है
गुब्बारा सदियों से चलती आ रही साथी है
गुब्बारा न्यू जेनरेशन के साथ प्रभावित है
क्योंकि इसका अस्तित्व मिटती जा रही है
गुब्बारा भविष्य में बच्चों का खिलौना नहीं
गुब्बारा भविष्य में बच्चों का साथी नहीं
गुब्बारा , गुब्बारा सबसे अच्छा गुब्बारा
गुब्बारा गुब्बारा दिल का प्यारा गुब्बारा
कभी आती है , दुर्गा मेला में तो कभी मेला ठेला में
दिल को भाती , बच्चों को भी भाती , सबको भाती
टिप्पणियाँ