दिवाली


बैलून, खिलौने और पटाखों से
सज - धज कर दुकानें खड़ी है।
रंग-बिरंगे बल्बों से पटकर
कण-कण चमक रहा है ।
शहर में लक्ष्मी के स्वागत में
बाजे बजाए जा रहे हैं।


गांव में लिपे-पुते घरों में
टिम-टिम  दीपक जल रहे हैं
दरिद्रों को भगाने के लिए
घर-घर सूप पीटा रहे है।
पर दरिद्रता बैठी रहती है
जाने का नाम नहीं लेती है।


शहरों में बच्चे सज-धजकर
छुरछुरी पटाखे फोड़ रहे हैं
गांव में अर्धनग्न बच्चे
हुक्का पाती खेल रहे हैं।
बताशा का प्रसाद खाकर
रोटी से पेट भर रहे हैं।


शहरों में मिठाइयां बांट-बांटकर
आनंद  मनाया जाता  है।
खाद-बीज के अभावों और
महंगी से गांव उदास खड़ा है।
शहरों में चमक रही दिवाली
गांव में छायी है अंधियाली।


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