सीता - द्रौपदी संवाद ( कविता )

कवि -
स्वर्ग में बैठी थी सीता उदास
 आयी द्रोपदी उनके पास 
उनके चरण स्पर्श किया 
सीता ने आशीर्वाद दिया ।


द्रोपदी -
आज भारत में बहस हो रही है 
नारी को आरक्षण मिल रहा है
 सभा में मेरा अपमान हुआ था
 पक्ष किसी ने नहीं लिया था ।


सीता -
 तुम तो अकेले लड़ती रही
 मैंने कभी विरोध नहीं किया 
गुड़िया बनकर बैठी रही
 घर का काम करती रही ।


द्रोपदी -
मैं तो जंगलों में भी खटती थी
 सदा बलात्कार से डरती रही 
जयद्रथ को सबक सिखाया 
कीचक को मृत्युदंड दिया ।


सीता -
मैं तो सदा निर्भय बनी रही
 छुईमुई सी दिखती रही 
न दुख भोगी , न संघर्ष किया
 विरह आग में जलती रही


द्रोपदी -
जब मेरे पुत्रों की हत्या हुई 
मर्मान्तक पीड़ा भोगी थी 
फिर भी साहस नहीं छोड़ी
 पतियों को संभालती रही ।


सीता -
वेदों में लोपामुद्रा ऋषि थी
 वह और माधवी विद्रोही थी
 नारी का एक संगठन था
 पुरुषों से लड़ती रहती थी 


द्रोपदी -
आप तो मुझसे पहले आयी
वेद की परंपरा क्यों नहीं रही ?
नारी का अधिकार नहीं रहा 
विद्रोही नारी क्यों ना बनी ?


सीता -
 पुराणों ने झूठी कहानी लिखी
 तुम मुझसे पहले आयी थी
 मेरे समय में हालात बिगड़ गयी
 नाइयों की दुर्गति होती गयी ।


द्रोपदी -
आपके पति एक आदर्श पुरुष थे 
आपने सतीत्व की परीक्षा दी थी 
फिर भी दूध में मक्खी की तरह
 निष्कासित क्यों कर दी गयी ?


सीता -
राम ने भयंकर अत्याचार किया 
तब ब्राह्मणों की चलती थी 
मैंने बिना विरोध सह लिया
अतः आदर्श घोषित हुई ।


द्रोपदी -
आज कोई अपनी पत्नी को
 घर से निकाल कर देख ले
उसका घर जेल में होगा
 और पत्नी घर में रहेगी ।

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