मानवता है खतरे में



षष्ट अरब मानव, धरती की
 मानवता है खतरे में ।
 अलग-अलग है धर्म यहां,
 अलग-अलग है भगवान ।
संस्कृति - सभ्यता,
 जाति - नस्ल, संप्रदाय में,
 बंट गया इंसान ।
इतिहास बंटा, भूगोल बंटा,
 बंट गए धरती के अरमान ।
धरती बंटी, राष्ट्र बंटा,
 क्षेत्रों में बंट गया आसमान 
सत्ता के खातिर सब,
टोपी अदल - बदल रहे हैं ।
धर्मोन्माद की आंधी में,
 आतंकवाद नाच रहा है ।
 संकीर्णता के दलदल में,
 हाय मानव उलझ गया है ।
मिट रहा है भाईचारा,
घृणा - द्वेष फैला रहा है ।
 खोज रहे हो, भटक रहे हो,
 अरे मानवता मिट रही है ।
 षष्ट अरब मानव धरती की,
 मानवता है खतरे मेंक्ष।

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